भारत में लोन लेना आजकल आम बात हो गई है, चाहे वह घर खरीदने के लिए हो, व्यवसाय शुरू करने के लिए हो, या फिर किसी अन्य व्यक्तिगत जरूरत के लिए। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर लोन लेने वाले व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो जाती है, तो बैंक उस लोन को कैसे वसूल करता है? क्या उस लोन की पूरी जिम्मेदारी गारंटर या परिवार के सदस्यों पर आती है? और यदि लोन लेने वाले ने किसी प्रकार की इंश्योरेंस पालिसी ली है, तो उस स्थिति में क्या होता है?
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि अगर कोई व्यक्ति बैंक से लोन लेता है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो बैंक किन-किन विकल्पों के जरिए अपनी रकम वापस वसूल करता है और किन परिस्थितियों में बैंक को नुकसान झेलना पड़ सकता है।
क्या होगा अगर लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाए?
जब कोई व्यक्ति लोन लेकर उसकी मृत्यु हो जाती है, तो बैंक के लिए यह एक कठिन स्थिति होती है, क्योंकि अब लोन लेने वाला व्यक्ति मौजूद नहीं है। बैंक को अपनी राशि की वसूली करनी होती है, और इसके लिए वह विभिन्न उपायों का सहारा लेता है।
सबसे पहले बैंक यह देखता है कि क्या लोन पर किसी प्रकार की इंश्योरेंस पालिसी ली गई थी, और अगर हां, तो इंश्योरेंस कंपनी द्वारा लोन की भरपाई कर दी जाती है। अगर इंश्योरेंस नहीं है, तो बैंक अन्य उपाय अपनाता है, जैसे कि गारंटर से संपर्क करना या गिरवी रखी संपत्ति को बेचना।
1. लोन पर इंश्योरेंस पालिसी की भूमिका
जब कोई व्यक्ति लोन लेता है, तो उसे अक्सर लोन के साथ इंश्योरेंस पालिसी भी दी जाती है, जिसे “लोन प्रोटेक्शन इंश्योरेंस” कहा जाता है। यह इंश्योरेंस पालिसी उस स्थिति में लाभकारी साबित होती है जब लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाती है। इस इंश्योरेंस की मदद से बैंक को लोन की पूरी या आंशिक राशि इंश्योरेंस कंपनी से मिल जाती है।
इंश्योरेंस पालिसी के फायदे:
- अगर लोन पर इंश्योरेंस लिया गया है, तो उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद इंश्योरेंस कंपनी बैंक को पूरा लोन चुका देती है।
- इस स्थिति में, लोन लेने वाले के परिवार या गारंटर को लोन चुकाने की चिंता नहीं होती है।
- इंश्योरेंस पालिसी लोन के अमाउंट और प्रकार के आधार पर दी जाती है, जैसे होम लोन, पर्सनल लोन, या ऑटो लोन।
2. गारंटर या को-एप्लिकेंट से लोन रिकवरी
यदि लोन पर कोई इंश्योरेंस पालिसी नहीं है, तो बैंक का अगला कदम यह देखना होता है कि क्या लोन पर कोई गारंटर या को-एप्लिकेंट है। गारंटर वह व्यक्ति होता है जिसने लोन लेने वाले के साथ समझौता किया होता है कि यदि वह लोन नहीं चुका पाता है, तो गारंटर इस लोन को चुकाने का जिम्मा उठाएगा।
गारंटर की जिम्मेदारी:
- गारंटर या को-एप्लिकेंट का मुख्य उद्देश्य बैंक को यह आश्वासन देना होता है कि अगर लोन लेने वाला व्यक्ति लोन चुकाने में असमर्थ होता है, तो वे लोन की पूरी राशि चुकाएंगे।
- लोन लेने वाले की मृत्यु के बाद, बैंक इनसे लोन की रिकवरी करने की कोशिश करता है।
3. गिरवी रखी संपत्ति को बेचकर लोन वसूली
अगर लोन लेने वाले ने न तो कोई इंश्योरेंस पालिसी ली है और न ही लोन के साथ कोई गारंटर है, तो बैंक द्वारा लोन के बदले रखी गई गिरवी संपत्ति को देखा जाता है। जैसे होम लोन के केस में, बैंक के पास आपके घर के पेपर गिरवी रहते हैं, या बिजनेस लोन के केस में बैंक के पास आपके बिजनेस का स्टॉक गिरवी रहता है।
संपत्ति की जब्ती और बिक्री:
- होम लोन के मामले में, बैंक घर के कागजात को गिरवी रखता है। यदि लोन की रकम वापस नहीं मिलती, तो बैंक कानूनी तौर पर उस संपत्ति को बेच सकता है और लोन की रकम वसूल कर सकता है।
- व्यवसायिक लोन के मामले में, बिजनेस का स्टॉक, मशीनरी, या अन्य संपत्तियां बैंक के पास गिरवी रखी जाती हैं, जिन्हें बेचकर लोन की रिकवरी की जाती है।
4. बिना गारंटी वाले लोन का जोखिम
कुछ लोन, जैसे की पर्सनल लोन या अन्य छोटे लोन, बिना किसी गारंटी या गिरवी रखी संपत्ति के दिए जाते हैं। ऐसे लोन पर न तो कोई इंश्योरेंस होता है और न ही कोई गारंटर। इस स्थिति में, अगर लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाती है, तो बैंक के लिए लोन रिकवर करना मुश्किल हो जाता है।
पर्सनल लोन पर संभावित नुकसान:
- पर्सनल लोन पर बैंक के पास कोई संपत्ति या गारंटी नहीं होती, जिससे वह लोन को रिकवर कर सके।
- इस स्थिति में, बैंक को लोन को “नॉन-परफॉर्मिंग एसेट” (NPA) के रूप में दर्ज करना पड़ता है, और लोन का पैसा डूब जाता है।
निष्कर्ष
बैंक से लोन लेने के बाद अगर लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाती है, तो बैंक कई चरणों में लोन की रिकवरी करता है। सबसे पहले यह देखा जाता है कि क्या लोन पर इंश्योरेंस है, फिर गारंटर या को-एप्लिकेंट से संपर्क किया जाता है, और अंत में गिरवी रखी संपत्ति को बेचकर लोन की वसूली की जाती है। अगर ये सारे उपाय विफल होते हैं, तो बैंक को लोन की राशि डूबने का सामना करना पड़ता है।
इसलिए, लोन लेने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोन के साथ उपयुक्त इंश्योरेंस पालिसी ली जाए, ताकि किसी अप्रिय घटना के बाद परिवार पर आर्थिक बोझ न पड़े।
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