Dolla vs Rupee: भारतीय रुपया, जो देश की आर्थिक स्थिति का एक महत्वपूर्ण सूचक है, 11 अक्टूबर 2024 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया। शुरुआती कारोबारी सत्र में यह 83.97 रुपये प्रति डॉलर पर खुला, लेकिन बाद में गिरते हुए 83.99 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह गिरावट देश के वित्तीय बाजारों और वैश्विक आर्थिक स्थितियों से प्रभावित है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, विदेशी निवेशकों द्वारा भारी बिकवाली और अमेरिकी डॉलर की मजबूती जैसी चुनौतियों ने रुपये पर दबाव डाला है, जिसके परिणामस्वरूप यह ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है।
अब सवाल यह है कि रुपये में इस गिरावट के पीछे के प्रमुख कारण क्या हैं? आइए जानते हैं विस्तार से।
रुपये की गिरावट के प्रमुख कारण
- कच्चे तेल की कीमतों में उछाल:
भारत विश्व के सबसे बड़े कच्चे तेल आयातकों में से एक है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आने से भारत की आयात लागत बढ़ जाती है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ता है। वर्तमान में ब्रेंट क्रूड की कीमत 77.71 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है, जो रुपये के कमजोर होने का प्रमुख कारण है। महंगे आयात के चलते भारत को अधिक डॉलर की जरूरत होती है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार पर भी असर पड़ता है और रुपये की कीमत गिर जाती है। - विदेशी निवेशकों की बिकवाली:
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा की गई भारी बिकवाली ने रुपये को कमजोर कर दिया है। 11 अक्टूबर 2024 तक, विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से लगभग 4,926.61 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। विदेशी पूंजी की यह निकासी रुपये की मांग को कम करती है, जिससे उसकी कीमत डॉलर के मुकाबले गिरने लगती है। - अमेरिकी डॉलर की मजबूती:
वैश्विक बाजार में अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना भी रुपये की गिरावट का एक प्रमुख कारण है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावनाओं ने डॉलर को मजबूत किया है। इससे वैश्विक निवेशक सुरक्षित निवेश के रूप में अमेरिकी डॉलर में अपनी पूंजी शिफ्ट कर रहे हैं, जिससे रुपये जैसे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर दबाव बढ़ रहा है। - शेयर बाजार में मंदी:
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की बिकवाली के साथ-साथ घरेलू शेयर बाजारों की कमजोर शुरुआत ने भी रुपये पर दबाव डाला। जब शेयर बाजार में गिरावट आती है, तो इसका सीधा असर निवेशकों के भरोसे पर पड़ता है, जिससे रुपये की कीमत और कमजोर हो जाती है।

रुपये की आगे की स्थिति क्या होगी?
आने वाले दिनों में रुपये की स्थिति कच्चे तेल की कीमतों, विदेशी निवेशकों के रुख, और अमेरिकी डॉलर की मजबूती जैसे कारकों पर निर्भर करेगी। यदि कच्चे तेल की कीमतें नियंत्रण में नहीं आईं और विदेशी निवेशकों की बिकवाली जारी रही, तो रुपये में और गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हस्तक्षेप से बाजार में स्थिरता लाने की कोशिश की जा सकती है।
क्या यह गिरावट लंबे समय तक बनी रहेगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वैश्विक आर्थिक स्थितियां और घरेलू नीतियां अनुकूल नहीं रहीं, तो रुपया आने वाले दिनों में और कमजोर हो सकता है। इसका सीधा असर आम जनता और व्यवसायों पर पड़ेगा, क्योंकि आयात महंगा होगा और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ सकता है ताकि रुपये को स्थिर किया जा सके।
निष्कर्ष
भारतीय रुपये की यह गिरावट देश की मौजूदा आर्थिक चुनौतियों को उजागर करती है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, विदेशी निवेशकों की निकासी, और अमेरिकी डॉलर की मजबूती ने मिलकर रुपये को दबाव में डाल दिया है। अगर इन परिस्थितियों पर जल्द नियंत्रण नहीं पाया गया, तो भारत की अर्थव्यवस्था को और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अब देखना यह होगा कि भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक आने वाले दिनों में कौन से कदम उठाते हैं ताकि रुपये को स्थिर किया जा सके और अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सके।
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